सरल

ध्यान तो सरल हैं, तुम कठिन हो | तुम्हारी कठिनाई जितनी कटेगी, ध्यान सरल होता जाएगा | जिस दिन तुम्हारे भीतर कोई कठिनाई ना होगी, उस दिन तुम पाओगे ध्यान करना उतना सरल है जैसे श्वास लेना | एक अर्थ में...ध्यान से ज़्यादा सरल कुछ भी नहीं है क्योंकि ये तुम्हारा स्वभाव हैं | दूसरे अर्थ में...ध्यान से कठिन कुछ भी नहीं हैं क्योंकि तुम बहुत जटिल हो गए हो | तुम्हारी जटिलता काटने में ही सारी साधना हैं | ~ ओशो

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