60) प्रकृति, कुदरत, सृष्टि, निसर्ग, Nature
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કોઈપણ મનુષ્યના હાસ્ય પરથી ઘણીવાર તેનાં ગુણ અવગુણ અને પ્રકૃતિ પારખી શકાય છે.
~ દત્તકૃષ્ણાનંદ
~~~
किसी भी इंसानकी हँसीसे अक्सर उसके गुण अवगुण और प्रकृति जांच सकते हैं |
~ दत्तकृष्णानंद
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*प्रकृति का काम तो सिर्फ*
*हमें मिलाना है*
*लेकिन*
*संबंधों की दूरियों या*
*नजदीकियों का निर्धारण*
*हमारा व्यवहार करता है!*
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*प्रकृति के तीन सख़्त नियम जो अटल है*
*1-: प्रकृति का पहला नियम*
यदि खेत में बीज न डालें जाएं तो कुदरत उसे *घास-फूस* से भर देती हैं...!!
ठीक उसी तरह से दिमाग में *सकारात्मक* विचार न भरे जाएँ तो *नकारात्मक* विचार अपनी जगह बना ही लेती है...!!
*2-: प्रकृति का दूसरा नियम*
जिसके पास जो होता है...!!
*वह वही बांटता है....!!*
सुखी *सुख* बांटता है...
दुःखी *दुःख* बांटता है..
ज्ञानी *ज्ञान* बांटता है..
भ्रमित *भ्रम* बांटता है..
भयभीत *भय* बांटता हैं......!!
*3-: प्रकृति का तीसरा नियम*
आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखो क्योंकि *भोजन* न पचने पर रोग बढते है...!
पैसा न *पचने* पर दिखावा बढता है...!
बात न *पचने* पर चुगली बढती है...!
प्रशंसा न *पचने* पर अंहकार बढता है....!
निंदा न *पचने* पर दुश्मनी बढती है...!
राज न *पचने* पर खतरा बढता है...!
दुःख न *पचने* पर निराशा बढती है...!
और सुख न *पचने* पर पाप बढता है...!
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દુનિયા અજીબ છે મીઠાં થાવ તો ગળી જાય
કડવા થાવ તો થૂંકી નાંખે
ખોવાઇ જાવ તો ગોતવા નીકળે સામા મળૉ તો મોઢા ફેરવે
આપણે આમાં જ જીવવાનું છે...
देखा नहीं जाता
इस प्रकृति का नाश,
अपने स्वार्थ के लिए कर रहे,
हम इसका सर्वनाश।
~ स्वाती गुप्ता
કોઈપણ મનુષ્યના હાસ્ય પરથી ઘણીવાર તેનાં ગુણ અવગુણ અને પ્રકૃતિ પારખી શકાય છે.
~ દત્તકૃષ્ણાનંદ
~~~
किसी भी इंसानकी हँसीसे अक्सर उसके गुण अवगुण और प्रकृति जांच सकते हैं |
~ दत्तकृष्णानंद
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*प्रकृति का काम तो सिर्फ*
*हमें मिलाना है*
*लेकिन*
*संबंधों की दूरियों या*
*नजदीकियों का निर्धारण*
*हमारा व्यवहार करता है!*
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*प्रकृति के तीन सख़्त नियम जो अटल है*
*1-: प्रकृति का पहला नियम*
यदि खेत में बीज न डालें जाएं तो कुदरत उसे *घास-फूस* से भर देती हैं...!!
ठीक उसी तरह से दिमाग में *सकारात्मक* विचार न भरे जाएँ तो *नकारात्मक* विचार अपनी जगह बना ही लेती है...!!
*2-: प्रकृति का दूसरा नियम*
जिसके पास जो होता है...!!
*वह वही बांटता है....!!*
सुखी *सुख* बांटता है...
दुःखी *दुःख* बांटता है..
ज्ञानी *ज्ञान* बांटता है..
भ्रमित *भ्रम* बांटता है..
भयभीत *भय* बांटता हैं......!!
*3-: प्रकृति का तीसरा नियम*
आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखो क्योंकि *भोजन* न पचने पर रोग बढते है...!
पैसा न *पचने* पर दिखावा बढता है...!
बात न *पचने* पर चुगली बढती है...!
प्रशंसा न *पचने* पर अंहकार बढता है....!
निंदा न *पचने* पर दुश्मनी बढती है...!
राज न *पचने* पर खतरा बढता है...!
दुःख न *पचने* पर निराशा बढती है...!
और सुख न *पचने* पर पाप बढता है...!
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દુનિયા અજીબ છે મીઠાં થાવ તો ગળી જાય
કડવા થાવ તો થૂંકી નાંખે
ખોવાઇ જાવ તો ગોતવા નીકળે સામા મળૉ તો મોઢા ફેરવે
આપણે આમાં જ જીવવાનું છે...
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देखा नहीं जाता
इस प्रकृति का नाश,
अपने स्वार्थ के लिए कर रहे,
हम इसका सर्वनाश।
~ स्वाती गुप्ता
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